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13:45, 17 अप्रैल 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= रामकिशोर दाहिया
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जली आग में
घी मतलब का
करता काम निरे अड़भंगे
चीख पुकारें,
दाब रहे हैं
ऊँचे स्वर के हर हर गंगे
कहाँ! सुरक्षा
अपनी खोजें
कर्फ्यू लिये रात-दिन घर में
भूखे-लांघे
खा लेते हैं
लाठी, डंडा, जूता सर में
गली, घाट,
सड़कों पर बेसुध
पड़े लाश ले खूनी दंगे
अफरी मेड़
खेत को चरकर
पागुर करे नाक के नीचे
फिर आबरू
भीख माँगती
देखे संसद आँखें मीचे
गिरे गगन
या गोली चीरे
न्याय माँगना भूखे नंगे
-रामकिशोर दाहिया
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