गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
घर के अंदर रही,घर के बाहर रही/ जहीर कुरैशी
2 bytes removed
,
17:39, 21 अप्रैल 2021
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
घर के अन्दर रही, घर के बाहर रही
जिन्दगी की लड़ाई निरंतर रही
आज भी मोम-सा है ‘अहिल्या’ का मन
देह, शापित ‘अहिल्या’ की पत्थर रही !
</poem>
सशुल्क योगदानकर्ता ५
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,441
edits