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गंगे आज सूरज ने बतायाअच्छा हुआ सर्दियों का अंत हमेशा रही दूर तू दिल्ली सेअब नजदीक आया
देख-देख यमुना की हालतभेद सारे भूलकर मिलजुल गये हैंरोये रोज़ हिमालयदाल, चावल, नमक, पानी और सब्ज़ीसीधी-सादी नदी हो गईप्यार की चंचल थिरकती आग पर यूँउन्नति का शौचालयबन गई तीखी मसालेदार खिचड़ी
ले जाकौन है जिसकोअपनी बहना को भीकहीं दूर तू दिल्ली सेन इसका स्वाद भाया
दिल्ली पड़ गईं कमज़ोर दुख की नज़रों में अब तूस्याह रातेंकेवल एक नदी शेष हैपर जीतना अच्छे समय कापर बूढ़े खेतों की ख़ातिरपर्व खिचड़ी का करे उद्घोषणा यहअब भी माँ जैसी आ गया हैपास बिल्कुल दिन विजय का
कह तोपल छिनों मेंक्या भविष्य देखा जोबही दूर तू दिल्ली सेफिर नया उत्साह छाया
दिल्ली तुझ तक पहुँचे सूर्य पर आरोप था दक्षिण दिशा कीउससे पहले राह बदल देबेवजह ही तरफ़दारी कर रहा हैऔर लटें कुछ अपनी खोलेंजाकर शिव भ्रम न फैले विश्व में झूठी ख़बर से कह देइसलिए वह उत्तरायण हो रहा है
मत होधूप ने फिर सेयूँ निश्चिंतज़ियादा नहीं दूर तू दिल्ली सेपुराना तेज पाया
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