यह तो साहित्यकार के धर्म की बात थी; मेरा निरंतर प्रयास रहा है कि इस धर्म का निर्वाह करूँ । पूर्व में प्रकाशित मेरे संग्रहों 'आज ये मन', '[[मन के कागज़ पर]]' और '[[घुँघरी]]' को आप सभी आत्मीय पाठकों का पाठकीय आशीर्वाद प्राप्त हुआ; मैं सौभाग्यशालिनी हूँ । इन सभी संग्रहों को अच्छी लोकप्रियता मिली तथा इनकी अधिकतर रचनाएँ कविताकोश http://kavitakosh.org, हिन्दी चेतना https://www.hindichetna.com, सहज साहित्य https://www.sahajsahity.com, नीलाम्बरा.com, https://www.rachanakar.org, http://amstelganga.org , http://www.udanti.com आदि पर सहस्रों पाठकों द्वारा पढ़ी तथा सराही जा रही हैं।
आपकी पाठकीय प्रतिक्रियाएँ मेरे लिए ऊर्जास्रोत हैं; एक बार पुनः आपके मध्य इस काव्य-संग्रह को लेकर उपस्थित हूँ; जिसका शीर्षक है- ‘मीलों चलना है’ । शीर्षक में प्रतिबिंबित है; वह प्रेरणा और जीवटता जो जीवन में निरंतर कर्मठता और संघर्षशीलता को ही जीवन का मुख्य आधार मानती है । इसी प्रेरणा और उत्साह के साथ हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आसक्ति रहित कर्म को प्रेरक मानकर निष्काम भाव से कर्म करते रहने की आवश्यकता है । अब इस संग्रह के प्रकृति की बात करूँगी । यह संग्रह मन के सहज भावों तथा प्रेम में मिलन-विछोह आदि को शब्दों में पिरोने के साथ ही वर्त्तमान समाज की विद्रूपताओं को भी चित्रित करने का प्रयास है । है। पिछले संग्रह ‘घुँघरी’ की विषयवस्तु पहाड़ के जनमानस और महिला विषयों पर केन्द्रित थी; आप सभी पाठकों ने अपना भरपूर प्रेम प्रदान किया । किया। आप सबकी आत्मीयता मेरे सृजनकर्म हेतु ऊर्जास्रोत है । है। आपका स्नेह बना रहे और मेरा रचनाकर्म निरन्तर चलता रहे; यही कामना है ।… है…
'''मकर संक्रान्ति, 15 जनवरी, 2020'''