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14:32, 12 मई 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=फूलचन्द गुप्ता
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
बेवजह की नहीं, बावजह कीजिए ।
नाव है, नाख़ुदा से ज़िरह कीजिए ।
सारी दुनिया समा जाए आग़ोश में,
अब मुहब्बत ही कुछ इस तरह कीजिए ।
हर जगह पर यहाँ तख़्त-ए-ताऊस हैं
अपनी ख़ातिर भी थोड़ी जगह कीजिए ।
हाथ में हथकड़ी, पाँव में बेड़ियाँ,
रण इन्हीं के सहारे फतह कीजिए ।
कोई पर्वत पे है, कोई खाई में है
दौड़ना, पहले समतल सतह कीजिए ।
</poem>