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<poem>
घर के पास नदी होती थी ।
जिसमें माँ कपड़े धोती थी ।

बच्चे को कनियाँ में लेकर,
बोझा मूड़ें पर ढोती थी ।

चूल्हे-चक्की से फुरसत पा,
खेतों में जड़हन बोती थी ।

अम्मा की यादों की खूँटी,
दादा का कुर्ता धोती थी ।

बटुली में अदहन रखकर माँ,
घण्टों तक छिप-छिप रोती थी ।

सबसे पहले सोकर उठती,
सब सो जाएँ, तब सोती थी ।

मैं मीज़ान समझ ना पाया,
क्या पाकर माँ सब खोती थी ।
</poem>
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