923 bytes added,
19:39, 19 मई 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कविता भट्ट
}}
{{KKCatGadhwaliRachna}}
<poem>
'''आँखें गले मिलीं तो कर गईं,'''
निश्छल शैशव का आलिंगन।
पहाड़ी झरने- सी उसकी हँसी,
दो पल नहाया मेरा बचपन।
एक-एक धारा में भर अंजुलि,
जी न भरा, जी लिया जीवन ।
बचपन जो पुरुष न था न स्त्री,
अब वह पुरुष, मैं स्त्री का बंधन।
देह बन्दी हुई जकड़न में ,
क्या पाया ,पाकर बैरी यौवन।
मन भिखारी-सिंहासन बुद्धि,
खोजूँ- पुनः वही मन-बचपन।
<poem>