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08:56, 20 मई 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेंद्र नेह
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|संग्रह=
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<poem>
हम बदला लेंगे
तुमसे ए बटमार !
तुमने तोड़े मेरे सपने
तुमने मारे मेरे अपने
हम बदला लेंगे
तुमसे सरमायेदार !
बूढ़ों को बहुत सताया
बच्चों को बहुत रुलाया
हम बदला लेंगे
तुमसे ओहदेदार !
थे बदन में उग आए काँटे
जब तुमने मारे चाँटे
हम बदला लेंगे
तुमसे हवलदार !
फ़सलों पे चलाया रोलर
तुम लूट के ले गए घरभर
हम बदला लेंगे
तुमसे ज़मींदार !
ये दमन का कैसा मंज़र
तोड़े हैं अस्थि-पंजर
हम बदला लेंगे
तुमसे ए सरकार !
</poem>
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