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09:01, 20 मई 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेंद्र नेह
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<poem>
बेच डाले हैं सभी सम्बन्ध
बाक़ी क्या बचा है ?
बहन बेटी माँ पिता भाई
प्रेमिका नव ब्याहता पत्नी
बन गए हैं सब बिकाऊ पण्य
भ्रूण में जो पल रही धड़कन
उसे भी बेच डाला
बेच डाले हैं सभी अनुबन्ध
बाक़ी क्या बचा है ?
मन्दिरों की घण्टियाँ, ध्वज-पताकाएँ
पुस्तिकाएँ, देवता, ईश्वर
सभी कुछ हो रहा नीलाम
आस्था श्रद्धा अटल विश्वास
सभी नीलाम घर में
बेच डाली हैं सभी सौगन्ध
बाक़ी क्या बचा है ?
वृक्ष, नदियाँ, ताल, झीलें
हवा पुरवाई, बाँसुरी के स्वर
देश, सीमाएँ, शहीदों के कफ़न
मॉल में उपलब्ध है सब कुछ
बेच डाली है धरा की गन्ध
बाकी क्या बचा है ?
</poem>