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ये समय / महेंद्र नेह

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ये समय अपकर्षकारी
ये समय है दुर्विकारी
ये समय है द्वन्द-दर्पित रथ ।

उच्चता है सिर्फ़ उनको जो कुटिल त्राटक
चीन्हता है महज उनको जो पतित दाहक
ये समय है कपटहन्ता
ये समय है आत्महन्ता
ये समय है कलह कल्पित कथ ।

देखता है स्वयं की छवि आत्मसम्मोहन
बोलता है शब्द धूमिल क्लान्त विस्फोटक
ये समय है दुःस्वप्न गामी
ये समय है विपथ गामी
ये समय है वेग घर्षित श्लथ ।

दौड़ता है अन्धता के उच्च शिखरों पर
चाहता है लील जाना भू उदधि अम्बर
ये समय विध्वंस पक्षी
ये समय है सर्वभक्षी
ये समय है खून से लथ-पथ ।
</poem>
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