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09:13, 20 मई 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेंद्र नेह
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<poem>
माफ़िया ये समय
हमको नित्य धमकाता ।
छोड़ दो यह रास्ता
ईमानवाला
हम कहें, वैसे चलो
बदल दो साँचे पुराने
हम कहें, वैसे ढलो
माफ़िया ये समय
हमको नित्य हड़काता ।
त्याग दो ये सत्य की
तोता रटन्ती
हम कहें, वैसा कहो
फेंक दो तखरी धरम की
हम कहें, जैसा करो
माफ़िया ये समय
हमको नित्य दहलाता ।
भूल जाओ जो पढ़ा
अब तक किताबी
हम कहें, वैसा पढ़ो
तोड़ दो क़लमें नुकीली
हम कहें, जैसा लिखो
माफ़िया ये समय
हम को नित्य धमकाता ।
</poem>