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09:17, 20 मई 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेंद्र नेह
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|संग्रह=
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<poem>
ये जो बाज़ार है
जी हाँ, बाज़ार है
सत्य बिकता यहाँ
झूठ गुलज़ार है ।
हैं तिलस्मी महल
झोपड़ी गुम यहाँ,
जादुई दृश्य हैं
आदमी ग़ुम यहाँ,
तन का सौदा यहाँ
मन गिरफ़्तार है ।
एक के दो नहीं
हैं करोड़ों यहाँ,
आ गए चुप रहो
सर न फोड़ो यहाँ,
न्याय तुलता यहाँ
धर्म लाचार है ।
हर ग़ज़ल का यहाँ
एक ही क़ाफ़िया,
आदमी का लहू
किसने कितना पिया,
मौत का जश्न है
ज़िन्दगी हार है ।
</poem>