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03:51, 3 जून 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ममता व्यास
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<poem>
वे दोनों ही दुखों की सड़क पर चलकर आये थे।
दोनों के पैरों में अनगिनत छाले थे।
जिनसे वे कई बरसों तक कांटे निकालते रहे।
लड़की एक दिन उकता कर पीड़ा को रस्सी बना पहाड़ पर चढ़ गयी
उसने पहाड़ से आवाज़ लगाई
"देखो-देखो कितना सुंदर दृश्य है,
इंद्र धुनष के सात रंग है।
नदियों के अजब ढंग है,
पंछियों के अनोखे संग है।"
लड़का ज़मीन में सर झुकाए
अपने छालों में सर खपाए
उस पर खीजकर चिल्ला पड़ा।
"पागल हो गयी हो,
झूठ बोलती हो।
देखो, ये दृश्य देखो
छालों में कोई सात रंग नहीं है
दुखों में कोई संग नहीं है
जीवन का कोई एक ढंग नहीं है।"
</poem>