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तुम आती हो / अशोक शाह

496 bytes added, 09:20, 26 जून 2021
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तुम आती हो
जल उठता है शाम का दिया
दिन होने की ज़रूरत नहीं होती
मेरा वश चले तोसूरज को रख दूँ किसी ताखे परऔर भूल जाऊँ हमेशा के लिएताकि झाड़-पोंछ कर रोज़ तुम्हेंउसे बाहर निकालने की ज़रूरत न पड़े
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