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वर्षा-ऋतु में विरहिणी की स्थिति का वर्णन किया गया है।
सखिया सावन बहुत सुहावन ना, ना मनभावन अइलन मोर।
एक त पावस खास अमावस, काली घाटा चहुँओर॥ सखिया॥
पानी बरसत जिअरा तरसत, दांदुर दादुर मचावन सोर॥ सखिया॥ठनका ठनकत झिंगुर झनकतचमकत झनकत, चमकत बिजली ताबरतोर॥ सखिया॥कहत ‘भिखारी’ बिहारी पिअरी से , होई गइलन चित्तचोर॥ सखिया॥
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