Changes

यहाँ-वहाँ — जहाँ-तहाँ
टपक गई — चू गई !
 
और अब
टूटते-सिकुड़ते माथे
और पेट पर फिरते मजबूर हाथ के सिवा
कहीं कुछ भी नहीं है !
बाहर, गली में खेलते बच्चों के पिता
या तो हैं ही नहीं —
या फिर उनका नाम
किसी ख़ास पोर्टफ़ोलियो के साथ
चिपकने के लिए सुरक्षित है !
पिता होना या कहलाना
बकवास या जुर्म जैसी कोई बात है शायद !
शताब्दियों से एक साँप
बाम्बी में सिर छिपाए,
लाठियों की चोट सहकर ऐंठ रहा है !
और यह शर्वरी
जिसका
किसी बुद्ध — ईसा — गाँधी — नेहरू — कैनेडी
लेनिन — हिटलर — मुसोलनी
मार्क्स — अरस्तू — प्लेटो से
दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं !
 
 
 
 
1966
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