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{{KKRachna
|रचनाकार=यशोधरा रायचौधरी
|अनुवादक=मीता दास
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<poem>
शिशुओं का कलरव
मृत शिशुओं का कलरव
दूर - दूर तक टूटे - फूटे कंक्रीट में लटके
मस्तिष्क के लोथड़े और कुछ काले धब्बों से
न जाने कब इस सब से परे केवल ....

नौका में बह रहे एक या दो बाल गीतों के मुखड़े

शिशुओं की मुस्कान और काँच की चूड़ियों की तरह ही रुनझुन संगीत
दुर्गा दीदी की गोद में अपु (पोथेर पांचाली के किरदार)
जकड़े हुए हैं चींथड़ों में गुड़िया और भालू का बच्चा
जिसकी एक आँख बाहर की ओर निकली हुई,
हिल-डुल रही है उसकी गर्दन

अनुपस्थित शिशुओं का कलरव सुनती हूँ
आज भी
और छपाक - छपाक की आवाज़ में सुनती हूँ
किनारों का टूटना ।।

'''मूल बांगला से अनुवाद : मीता दास'''
</poem>
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