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11:42, 12 सितम्बर 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अंशुल आराध्यम
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<poem>
उग रहे हैं आत्मा में वन कटीले
अब कहीं महका हुआ चन्दन नहीं है
कौन समझे दुख में डूबी खनखनाहट
हथकड़ी है हाथ में, कंगन नहीं है
है बहुत भयभीत कलियाँ मालियों से
डर के पथ में फूल कैसे पग उठाए
हर तरफ़ अधिकार चीलों का उजागर
किस तरह कोयल सुरीला गीत गाए
ले नहीं पाती हवाएँ, सांस सुख की
बाग़ मे पतझड़ तो है सावन नहीं है
कौन समझे दुख में डूबी खनखनाहट
हथकड़ी है हाथ मे, कंगन नहीं है
आत्मा विश्वास की मरने लगी अब
पास के रिश्ते भी पत्थर मारते हैं
एक आँसू को तरस जाते हैं दरिया
जब कभी ताने समन्दर मारते हैं
मेरा दुख ये है, मुझे सच बोलना है
हाथ मे लेकिन कोई दर्पन नहीं है
कौन समझे दुख में डूबी खनखनाहट
हथकड़ी है हाथ मे, कंगन नहीं है
</poem>