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चान्द-1 / वन्दना टेटे
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09:53, 13 सितम्बर 2021
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<poem>
हर रोज़ शाम
चान्द
चाँद
मेरे साथी की तरह
ऑफ़िस से निकलते ही
सड़कों पर की
चिलपों
चिल्लपों
पेड़ों बादलों की
लुका-छिपी
घर वाली अन्धेरी गली
टाते
आते
ही कसक सी
उठ जाती है जुदा होने के नाम पर
और
Arti Singh
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