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सिंधुतट की बालुका पर जब लिखा मैने मैंने तुम्हारा नामयाद है, तुम हंस पड़ीं हँस पड़ी थीं, 'क्या तमाशा है
लिख रहे हो इस तरह तन्मय
कि जैसे लिख रहे होओ शिला पर।
मानती हूंहूँ, यह मधुर अंकन अमरता पा सकेगा।
वायु की क्या बात? इसको सिंधु भी न मिटा सकेगा।'
और तबसे तब से नाम मैने मैंने है लिखा ऐसेकि, सचमुच, सिंधु की लहरें न उसको पाएंगीपाएँगी,
फूल में सौरभ, तुम्हारा नाम मेरे गीत में है।
विश्व में यह गीत फैलेगा
अजन्मी पीढ़ियां पीढ़ियाँ सुख से तुम्हारे नाम को दुहराएंगी।दुहराएँगी।
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