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|रचनाकार=अदिति वसुराय
|अनुवादक=अनिल जनविजय
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<poem>
आधी रात को भी
लिखने की मेज़ पर रोशनी रहती है।

चारों तरफ सर्दी बढ़ रही है
दीवार के उस पार सभी पक्षी, पेड़
सर्दी से अकड़ रहै हैं
और घर की एकमात्र खिड़की बन्द है।

पूरे दिन खिड़की के काँच पर बजती है हवा —
हवा खिड़की को झकझोरती है
और मैं सुबह वापस लौटना चाहता हूँ
वापस जाने की चाह में मैंने इच्छामती नदी को पार किया

लेकिन इस समय भरा-पूरा सूरज खिला हुआ है
बेबस सा होकर मैं छत पर चढ़ गया
रूफ का अर्थ है जुरासिक पार्क
रूफ यानी बिना रंग वाला लाल स्वेटर।
स्पीलबर्ग नियमित रूप से छत पर वसन्त लाते हैं

मेरा शरीर ख़राब है
सफेद चावल देखना पाप है !

डायनासोर, कृपा करो !
और लाल रंग का वह डायनासोर
'बैंगनी' शाम के आसमान में खिल गया।

'''मूल बांगला से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>
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