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22:35, 12 अक्टूबर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=यानिस रित्सोस
|अनुवादक=गिरधर राठी
|संग्रह=
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<poem>
बहरहाल, अब रंगों की तादाद कम हो गई है, वह बोला,
बची-खुची खेतों की हरियाली यह, यही काफ़ी है मेरे लिए ।
और फिर समय के साथ चीज़ें घटती ही हैं ।
चीज़ें सिकुड़ जाती हैं शायद, और फिर विलय ।
पत्ते की हल्की-सी थिरकन —
और एक नया द्वार खुल जाता है,
सहन में घुसकर मैं चलता चला जाता हूँ दूसरे छोर तक —
दोनों ओर कतार में खिड़कियाँ और बुत ।
खिड़कियाँ सफ़ेद, बुत लाल हैं —
साफ़ नज़र आते हैं मुझे : साँप, हिरन, उल्लू ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : गिरधर राठी'''
</poem>