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14:10, 14 अक्टूबर 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=माधव मधुकर
|अनुवादक=
|संग्रह=ल
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<poem>
अब गाए जाते नहीं गीत
उमस भरे कमरे के बीच
अब गाए जाते नहीं गीत
उम्र की अलगनी पर
टाँग दिया है मैंने
फटे हुए वस्त्रों-सा
सारा अतीत
आनेवाले दिन की
आख़िरी प्रतीक्षा में
दिन अब तो
जैसे-तैसे जाता बीत
अनचाहे आगत की
अनजानी बाँहों के बीच
अब गाए जाते नहीं
मनचाहे मौसम के गीत
छोटे से आँगन में
बड़े नेह से मैंने
रोपे थे
गुलमोहर, गुलाबों के फूल
लेकिन उग आए हैं
बिनबोए अनगिन ये
नागफनी, बाँस औ’ बबूल
अनपेक्षित प्राप्यों के
ज़हरीले शूलों के बीच,
अब गाए जाते नहीं
महकीले फूलों के गीत
</poem>