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14:18, 14 अक्टूबर 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=माधव मधुकर
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<poem>
चाहता था
मैं
नदी-सा सहज गति से
बस्तियों, खेतों, सघन वन-प्रान्तरों में
अनवरत बहना —
प्रकृति के प्रत्येक प्यासे कण्ठ को
परितृप्त करना
किन्तु अनगिन किन्तुओं से घिरा
घर, परिवार, खर, कतवार,
सबका बोझ लादे
मैं महज —
एक नाव बनकर रह गया ।
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