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भूरे की हर छाया / उंगारेत्ती

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|रचनाकार=उंगारेत्ती
|अनुवादक=नंदकिशोर आचार्य
|संग्रह=मत्स्य-परी का गीत / उंगारेत्ती
}}
[[Category:इतालवी भाषा]]

<poem>
साँप की छोड़ी गई केंचुल
से ले कर कातर मस्से तक
भूरे की हर छाया
रेंगती है गिरजाघरों पर...
एक स्वर्णिम पोत की तरह

सूर्य
विदा लेता है
एक-एक तारे से
और गुस्सा होता है मंडुवे तले...

रात फिर उतर आती है
थके माथे की तरह
एक हथेली की खोखल में ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : नन्दकिशोर आचार्य
</poem>
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