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बंगाली बाबू / केदारनाथ सिंह

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<poem>
बीस बरस बाद
छाता लगाए हुए
पडरौना बाजार में मुझे दिख गए बंगाली बाबू
बीस बरस बाद मैं चिल्लाया
'बंगाली बाबू, बंगाली बाबू
कैसे है बंगाली बाबू ?'

वे मुड़े मुझे देखा, मुस्कराये
और 'ठीक हूँ' कहते हुए बढ़ गए आगे
मैं समझ न सका
बीस बरस बाद छाता लगाए हुए
कितने सुखी या दुखी है
बंगाली बाबू ।

देखा, बस, इतना
कि मेरी आँखों के आगे
चला जा रहा है एक छाता

सोचता हुआ, मुस्कराता हुआ
ढाढ़स बँधाता हुआ
बोलता बतियाता हुआ छाता ।
</poem>
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