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कबीर दोहावली / पृष्ठ ७

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तू तू करूं तो निकट है, दुर-दुर करू हो जाय ।
जों गुरु राखै त्यों रहै, जो देवै सो खाय ॥ 700 ॥
 
दया हृदय में राखिये तूं क्यों निरदय होय।
सांई के सब जीव हैं कीरी कुंजर दोय ॥701॥
 
भाव भाव में सिद्धि है भाव भाव में भेद ।
जो मानो तो देव है नहीं तो भींत क लेव ॥702॥
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