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|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
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<Poem>
मैं धोबन हूँ, उम्र 54 साल, बेवा
मेरे मरद को 1918 में गोली मार दी गई सड़क पर
हम रसोई में बैठे थे, और बाहर बवाल शुरू हो गया
मैंने जैकेट पहनने में उसकी मदद की और उससे कहा :
चलो बाहर
वहीं हमारी जगह है

ज़िन्दगीभर हम काम करते रहे
खाने को कम ही मिला और आराम का वक़्त नहीं
और रह-रह कर कुछ एक साल पर हमें रास्ते पर धकेला जाता रहा
क्योंकि हम वक़्त पर किराया नहीं दे पाते थे
चलो बाहर
वहीं तुम्हारी जगह है

(1918 में कार्ल लीबक्नेष्त और रोज़ा लुक्सेमबुर्ग के नेतृत्व में जर्मनी में क्रान्ति की विफल कोशिश की गई थी)

'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
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