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09:21, 25 नवम्बर 2021 {{KKRachna
|रचनाकार=निर्मल 'नदीम'
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
इश्क़ वहशत हुआ, वहशत से जुनूँख़ेज़ हुआ,
यानी पैमाना मेरा आग से लबरेज़ हुआ।
चांद सूरज को बुला लेता है घर में अपने,
तेरा शायर तो तेरे इश्क़ में तबरेज़ हुआ।
तेरी ख़ुशबू से मेरी रूह पे तारी है सुरूर,
तेरे बोसे से मेरा लब गुल ए नौख़ेज़ हुआ।
इस तरह मुझमें समाया है कि इक नूर ए ख़ुदा,
अर्श से आ के मेरी रूह में आमेज़ हुआ।
छू गया तेरा दुपट्टा जो अचानक मुझसे,
धड़कने बढ़ने लगीं खूं शरर अंगेज़ हुआ।
करवटें लेता रहा दर्द मेरी पलकों पर,
दश्त ए इमकान ए वफ़ा ज़ख़्म से गुलरेज़ हुआ।
तेरे एहसास ने बदला है तसव्वुर का मिज़ाज,
तेरा गुलरंग मेरी फ़िक्र का रंगरेज़ हुआ।
धूप जब रुख़ की तेरे उतरी मेरी आंखों में,
गुलशन ए इश्क़ चमक उट्ठा दिल आवेज़ हुआ।
वक़्त ए सजदा जो तेरे पांव पे टपका था नदीम,
क़तरा ए अश्क मेरा सैल ए बलाख़ेज़ हुआ।</poem>