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{{KKRachna
|रचनाकार=विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
|संग्रह=आओ नई सहर का नया शम्स रोक लें / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ये मुमकिन है कि मुझसे कुछ तो वो रूठा हुआ होगा
मगर बिछड़े जहाँ थे हम, वहीं ठहरा हुआ होगा

मुझे नीचा दिखाने की न ताक़त दुश्मनों में थी
ये लगता है, मेरे अपनों से, कुछ सौदा हुआ होगा

उसी का राज़े-पिन्हां खुल गया होगा अचानक ही
नहीं तो क्यों फिर उसका ज़ाइक़ा कड़वा हुआ होगा

सिकंदर से हमें ये सीख, आख़िर क्यों नहीं मिलती
जो जग को जीतता है, ख़ुद से वो हारा हुआ होगा

तुम अपने सत्य को, ढूँढ़ो ‘शलभ‘ अब मन के सागर में
ये मानो या न मानो, वो वहीं डूबा हुआ होगा
</poem>