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|रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=सुरेश सलिल
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<Poem>
हा ! हा ! हा ! हंसे सुकरात के मुवक्किल
लेकिन तीन में से एक ’हा !’ ने
उसे सोच में डाल दिया ।

केऑप्स के पिरामिडों में ग्यारह ग़लतियाँ हैं
बाइबिल में अनन्त
और न्यूटन की भौतिकी
अन्धविश्वासों से भरी हुई ।

सिनेमा से घर लौटते जोड़े
रोमियो और जूलियट को
सिखा सकते थे दो-चार बातें

जबकि
अज़दक का बाप
बेटे को अक्सर भौंचक छोड़ता रहा ।

1956

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
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