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09:23, 26 दिसम्बर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कुँवर दिनेश
}}
[[Category:हाइकु]]
<poem>
1.
अँधेरा हटे -
क्षितिज की भट्टी में
सूरज पके!
2.
पौ फटते ही
पूर्वी क्षितिज पर -
लपटें उठीं!
3.
'''आग भोर की'''
देवदारों से छने -
स्फुलिंग कई!
4.
सूरज उगे
नभ- कैनवास पे
दिन उकेरे!
5.
लाल विहाग!
सूर्य की जिजीविषा -
'''आग ही आग!'''
</poem>