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सुख-साज / कविता भट्ट

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रोक लेंगे क्या ये सब मुझे?
अभी -अभी बीते क्षण मेंऔर मृदु मृदाकण में
जगी थी एक स्फूर्ति
सजी थी एक मूर्ति