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09:58, 17 जनवरी 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शील
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देश हमारा, धरती अपनी, हम धरती के लाल,
नया संसार बसाएँगे, नया इनसान बनाएँगें ।
सुख स्वप्नों के स्वर गूँजेंगे, मानव की मेहनत पूजेंगे,
नई कल्पना, नई चेतना की हम लिए मशाल —
समय को राह दिखाएँगे, नया इनसान बनाएँगें ।
देश हमारा, धरती अपनी, हम धरती के लाल,
नया संसार बसाएँगे, नया इनसान बनाएँगें ।
एक करेंगे हम जनता को, सींचेंगे समता - ममता को,
नई पौध के लिए पहनकर जीवन की जयमाल —
रोज़ त्योहार मनाएँगे, नया इनसान बनाएँगे ।
देश हमारा, धरती अपनी, हम धरती के लाल,
नया संसार बसाएँगे, नया इनसान बनाएँगें ।
सौ - सौ स्वर्ग उतर आएँगे, सूरज सोना बरसाएँगे,
दूध - पूत के लिए बदल देंगे तारों की चाल —
नया भूगोल बनाएँगे, या संसार बसाएँगे ।
देश हमारा, धरती अपनी, हम धरती के लाल,
नया संसार बसाएँगे, नया इनसान बनाएँगें ।
</poem>