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<poem>
हवाई जहाज़ उड़ने में
कुछ समय शेष है
पर सच बन्धु
शेष तो बहत कुछ है
मेरा प्रेम, मेरी प्राथना
मेरी व्यथा, मेरी साधना

मेरा कर्म, मेरी भक्ति
मेरा श्रम, मेरी शक्ति
और इतने शेषों को
आँचल में लपेटे
कुछ अनकही बातों को
मन में समेटे

लो मैं चल दी
कांगारूं के देश की ओर।
</poem>