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|रचनाकार=रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
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<poem>
सवाल पर सवाल हैं, कुछ नहीं जवाब है ।
राख में ढकी हुई, हमारे दिल की आग है ।।

गीत भी डरे हुए, ताल-लय उदास हैं.
पात भी झरे हुए, शेष चन्द श्वास हैं,
दो नयन में पल रहा, नग़मग़ी सा ख्वाब है ।
राख में ढकी हुई, हमारे दिल की आग है ।।

ज़िन्दगी है इक सफर, पथ नहीं सरल यहाँ,
मंज़िलों को खोजता, पथिक यहाँ-कभी वहाँ,
रंग भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु नहीं फाग है ।
राख में ढकी हुई, हमारे दिल की आग है ।।

बाट जोहती रहीं, डोलियाँ सजी हुई,
हाथ की हथेलियों में, मेंहदी रची हुई,
हैं सिंगार साथ में, पर नहीं सुहाग है ।
राख में ढकी हुई, हमारे दिल की आग है ।।

इस अँधेरी रात में, जुगनुओं की भीड़ है,
अजनबी तलाशता, सिर्फ़ एक नीड़ है,
रौशनी के वास्ते, जल रहा च़िराग है ।
राख में ढकी हुई, हमारे दिल की आग है ।।
</poem>
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