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{{KKRachna
|रचनाकार=अलिक्सान्दर सिंकेविच
|अनुवादक=गिरधर राठी
|संग्रह=
}}
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<poem>
हवाएँ मरती हैं
और भी अधिक शान्ति छा जाती है
बादल मरते हैं
बरसात होती है
रातें मरती हैं
आकाश हलका हो जाता है
आदमी मरते हैं
धरती अधिक भारी हो जाती है ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : गिरधर राठी'''

'''लेनिन जन्म शताब्दी पर 1970 में प्रकाशित आलोचना के विशेषांक से'''
</poem>
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