गल जाएँगे दुख सभी, मिट जाएगी पीर।
'''कभी मीत के कंठ लगें, मेरे प्राण अधीर।'''
(21138छूट सकेगा ना कभी, तेरा मेरा साथ।मन के भीतर बस तुम्हीं, पकड़े रहना हाथ।139जड़-12 21)जंगम में एक तुम,ऐसा चेतन रूप।शीतलहर में लग गले, ज्यों सर्दी की धूप।140युगों -युगों से थी बसी, जो प्राणों में प्यास।रूप तुम्हारा ले मिली, मेरी जीवन -आस।।141जिस घर बहनें- बेटियाँ, वह घर स्वर्ग- समान।आकर खुद रहते वहाँ, मानव देव- समान।142मुझको तो मिलना सदा, धर बहना का रूप।बेटी भी बनकर मिलो, वह भी रूप अनूप।।143प्रभुवर मुझको दे सदा, इसी देह का दान।बहन बनों, बेटी बनो, करूँ सदा मैं मान।144जहाँ बहन के चरण पड़ें, वह देवों का थान।शीश वहाँ मेरा झुके, मन में वह सम्मान।145जनम -जनम का साथ था, जनम -जनम का खेल।इसीलिए इस जन्म में, हुआ बहन से मेल।146यह दूषित संसार है, दूषित सोच विचार।नफरत को ही पूजते, क्या जाने यह प्यार।147जीवन में होते रहें, चाहे जो संग्राम।जिह्वा पर केवल रहे , सिर्फ तुम्हारा नाम।
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