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18:49, 7 मार्च 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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<poem>
लेनिन, आप से मिलने के पूर्व
मैं गांधी से मिला था।
भारत के अध्यात्म का फूल
राजनीति में खिला था।
वह फूल गांधी थे।
गांधी अंग में मंद-मंद लगाने वाली
शीतल बयार थे।
आप तो तूफान और आंधी थे।
पहाड़ों से आपने झुकने को भी
नहीं कहा।
धक्का मारा और सीधे
उन्हें जड़ से उखाड़ दिया।
साँप और साँप के बच्चे,
दोनों को
जमीन के नीचे गाड़ दिया।
बापू ने हमें अहिंसा सिखायी थी,
मगर शर्म है कि वह हमसे नहीं चली।
माचिस को हमने छाती पर
बार-बार घिसा,
लेनिन-गांधी वाली आग
नहीं जली।
अब तो गांधी के बच्चे भी
उस पुरुष के इन्तजार मे हैं,
जो उजले घोड़े पर चढ़ा
रक्त-रंजित करवाल लिये आएगा,
जो लोग धर्म का हुक्म मानने से
इनकार करते है,
पृथ्वी को उनसे मुक्त कर जाएगा।
मौका था कि भगवान अब आते
और पाप के विरुद्ध युद्ध ठानते।
लेनिन, आपने अगर
भारत में जन्म लिया होता ,
हम आपको कल्कि का अवतार मानते।।
</poem>