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अकाल / अनिल जनविजय

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जब भी आता है
लाता है बुरे दिन
कल काल बन जाता है अकाल
1981 में रचित
 
'''लीजिए, अब इस कविता का भोजपुरी में अनुवाद पढ़िए'''
 
अकाल
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अकाल
जाही घरी आवे ला
अपना संगे लावेला
अड़ियल बरधा से बिगड़ल दिन
 
अकाल फरक ना करेला
बधार,माल मवेसी,बिरीछ,मानुख् में
 
बाज दाखिल असमान से उतरेला
लहलहात खेतन के छाती पर
फसिल के जकड़ेला पनजवन में
खेत से खरिहान ले सरकेला
 
अँधियार नीअर मड़ला जाला
लचकत चुप हरिअर डनटियन पर
पत्तवन के नान्ह हथेलियन पर
निडर जम जाला
जरीअन ले पहुँचे के मउका खोजेला
 
बोझा जस लदा जाला
पुट्ठादार गठियाइंल देही पर
खिंचेलन स नथुना,फुलेला दम
धीमे-धीमे देखावेला हाथ,उस्ताद
 
कुहा जइसन गिरेला
थाकल, मुरझाइल,पीअराइंल मुखन पर
लोगन के आँखिन में उतर जाला
पेट पर हल्ला बोलेला,सयतान
 
जे घरीओ आवेला
लावेला बिगड़ल दिन
काल बन जाला अकाल
 
'''भोजपुरी में अनुवाद जगदीश नलिन द्वारा'''
</poem>
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