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06:34, 31 मार्च 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=संतोष अलेक्स
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
शुरूआती दिनों में
सब कहीं प्यार नज़र आता था
लगता था सारी प्रकृति
झूम उठी है सिर्फ हमारे लिए
समझ रहे थे कम
चाह रहे थे एक दूसरे को ज्यादा
रात को भोजन करने पर
एकाध कौर
थाली में छोड़ देता मैं
वह चाव से खाती
ज़िंदगी के वो खूबसूरत पल
लगता था कि
हवा, मेघ, आसमान
सब हमारे लिए बना था
<poem>