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06:35, 31 मार्च 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष अलेक्स
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
हम घर से साथ निकलते
शाम को दफतर के बाद
साथ बाजार जाते
लौटते साथ
शाम को खाने पर साथ नहीं बैठते
माँ का हदय
कथरी सा बिछता है
बाबूजी जागते हैं रात भर
दोनों परिवारवालों की
आपसी सहमति से हुई थी
शादी हमारी
<poem>