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06:43, 31 मार्च 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष अलेक्स
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
(एक)
तब स्कूल से लौटते वक्त
बेर तोड़कर खाते खाते
घर जाया करते थे बच्चे
आज के बच्चे …….
(दो)
तब स्कूल से लौटते वक्त
बारिश में भीगकर
कागज की नाव बनाया करते थे बच्चे
आज के बच्चे …….
(तीन)
तब स्कूल से लौटते वक्त
अध्यापकों से नज़र चुराकर
गोटी खेला करते थे बच्चे
आज के बच्चे …….
(चार)
तब स्कूल से लौटते वक्त
गोला खाते खाते
यूनिफार्म गीला करते थे बच्चे
आज के बच्चे …….
(पांच)
आज के बच्चो को
बेर, कागज का नाव, गोटी व गोला
से मतलब नहीं है
कैद है वे मोबाईल की दुनिया में
आज के बच्चे
वे तो बचपन में ही बड़े हो जाते हैं
<poem>