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और उस चरम अद्भुत क्षण में
दिक्-काल की बेड़ी भग्न हुई ।
रक्त-समाधि में दिव्य स्वरों में बोले जब हम दोनों तू 'आ...आ', मैं 'ले...ले...'
रक्त-समाधि लगी और विसर्जित माया;
मिला रक्त से रक्त बढ़ाने आगे जीवन !
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