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06:48, 12 अप्रैल 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मरीने पित्रोस्यान
|अनुवादक=उदयन वाजपेयी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बारिश सब पर
एक सी हो रही है
छोटे पर, बड़े पर
ख़ुशक़िस्मत पर, बदक़िस्मत पर
बारिश हर ओर हो रही है ।
मैं पैदा नहीं हुई थी, वह हुई थी
बिजली जैसी चीज़ नहीं थी, वह हुई थी
आदमी आदमी खाता था, वह हुई थी
बारिश होते मैं देख सकती हूँ
बारिश मुझे नहीं देखती ।
मैं ख़ुश हूँ या उदास
भेड़िये मेरे मांस पर
उत्सव मनाएँ
उसे फ़र्क नहीं पड़ता
बारिश मनुष्य के दूसरी तरफ़ है
हम सब उसके लिए कुछ नहीं हैं
वह सब पर एक सी हो रही है
छोटे पर, बड़े पर
होशियार, बेवकूफ़ पर
नीच और उस पर
जो नीच नहीं है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदयन वाजपेयी'''
</poem>