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बाबा से सवाल / विनोद शाही

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बाबा ने कहा : देखो,
जितने भी पशु-पक्षी, पेड़, सरिसर्प या कीड़ मकोड़े तक
बनाए हैं कुदरत ने इस धरती पर
रहते हैं स्वस्थ
आप अपने वैद ख़ुद होकर

मानवेतर प्राणी सारे
पाते हैं जन्म पृथ्वी पर
योग की प्राकृतिक शिक्षा पाकर
देते हैं दिखाई
किसी न किसी आसन की मुद्रा में हरदम

लेकिन आया तभी एक मोर
बाबा के पास
एकदम सही मयूरासन में खड़ा
पूछने लगा सवाल
पुरखों की पुश्तों तक से साधता रहा हूँ यह आसन
पर अब थक गया हूं मैं भी आख़िरकार
क्यों नही हुआ समाधि का अनुभव
नहीं हुई मुक्ति क्यों एक भी मोर की आज तक
ले लिए हम से आसन तो उधार
खाकर डकार गए ज्ञान तक का ब्याज ?
ख़ुद को कहते हो मयूरासन-सिद्ध योगीराज
पर थोड़ा तो अपने मोर होने का दो हिसाब
नहीं हो कृतघ्न,
तो जो है सच में हक़दार
ऐसे हम जैसे किसी मोर को दो
अपना गुरू होने का अधिकार
</poem>
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