कौन हो तुम, कहाँ पैदा हुए, क्या है तुम्हारा नाम ?
कभी नहीं देखा मैंने तुम्हारा चेहरा
और शायद आगे भी कभी नहीं देख पाऊँगा ।
कौन जाने
शायद वह उन चेहरों से मिलता हो
साइबेरिया में जिन्होंने ’कल्चाक’ को पछाड़ा था,
शायद वह दुमलुपीनार के मैदानेजंग में पड़े
किसी चेहरे से कुछ मिलता हो,
मुमकिन है वह कुछ-कुछ रॉब्सपियरे जैसा हो !
कभी नहीं देखा मैंने तुम्हारा चेहरा
और शायद आगे भी कभी नहीं देख पाऊँगा,
तुमने भी कभी नहीं सुना होगा मेरा नाम
और आगे भी कभी नहीं सुन पाओगे ।
बीच में हमारे समन्दर और पहाड़ हैं
( लानत ऐसी मजबूरी को ... )
और है ’मध्यस्थता निरपेक्ष समिति’ !
तुम्हारे पास मैं आ नहीं सकता
और यहाँ तक कि
कारतूसों का एक बक्सा
ताज़ा अण्डे
या एक जोड़ा ऊनी मोज़े
तुम्हारे पास मैं पहुँचा नहीं सकता ।
तब भी पता है मुझे
कि उस बर्फ़ीले ठण्डे मौसम में
माद्रिद की दहलीज़ पर चौकसी करते तुम्हारे गीले पैर
बिना कपड़ों वाले दो नन्हे बच्चों की तरह ठिठुर रहे होंगे ।
जानता हूँ मैं
महान और ख़ूबसूरत जो कुछ भी है
और जो महान और ख़ूबसूरत अभी सिरजा जाना है
उसी सबकुछ के लिए तरसती मेरी रुह की उम्मीदें
माद्रिद की दहलीज़ पर डटे सन्तरी की आँखों की
चमक से बन्धी हैं ।
और, बीत चुके कल की तरह,
आज रात की तरह,
आने वाले कल भी
उस सन्तरी को चाहने के सिवा
मैं और कुछ नहीं कर पाऊँगा ।
25 दिसम्बर 1937