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11:23, 17 अप्रैल 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मरीने पित्रोस्यान
|अनुवादक=उदयन वाजपेयी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम दूर सरकते जा रहे हो
बर्फ़ की तरह —
वह गिरी थी एक रात
और उसने सब ढँक लिया था
सारी सड़कें बन्द कर दी थीं
हर आवाज़ चुप कर दी थी
हर दरवाजे़ पर इकट्ठा हो गई थी बर्फ़
अब रास्ते खुल गए हैं
दरवाजे़ खुल गए हैं
और तुम दूर सरकते जा रहे हो
बर्फ़ की तरह
जो दूर सरकती जाती है
जब मैं उसे गर्म अंजुलि में
भरने की कोशिश
करती हूँ ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदयन वाजपेयी'''
</poem>
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