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|रचनाकार=मरीने पित्रोस्यान
|अनुवादक=उदयन वाजपेयी
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<poem>
बसन्त था ग्रीष्म था
फिर से बसन्त था
बारिश हुई बर्फ़ पड़ी
फिर पिघल गई
बहुत-सी चीजे़ं होने को थीं,
नहीं हुई
न कभी होंगी ।

बर्फ़ की बून्दें केवल
बसन्त भर जीवित रहती हैं
मैं अपने पीछे कई बसन्त छोड़ आई
पर फिर से सूर्य चमकता है
मानो कुछ हुआ ही न हो
मानो कोई हमेशा के लिए खोया न हो

सर्दियाँ हैं, ठण्ड है
पर मेरे पास हीटर नहीं है
और मुझे पता है बसन्त आता ही होगा
तुम ठण्डी हो गई थी
और तुम्हें पता था कि
तुम्हारे लिए बसन्त नहीं आने वाला

सुबह से
मैं तुम्हें याद कर रही हूँ —
तुम्हारा शरीर
किस तरह पीड़ा में डूब गया था
सुबह से
मैं तुम्हें याद कर रही हूँ
और रो रही हूँ ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदयन वाजपेयी'''
</poem>
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