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{{KKRachna
|रचनाकार=मरीने पित्रोस्यान
|अनुवादक=उदयन वाजपेयी
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<poem>
मनुष्य
नाज़ुक प्राणी है
आसानी से डर जाता है
उम्मीद खो देता है आसानी से
आसानी से मर जाता है ।

मनुष्य हमेशा
कँटीली सेही जैसा है ।

भले ही वह ऊपर से
भालू जैसा हो
या मगरमच्छ जैसा ही,
उसका हृदय
बहुत तेज़ी से धड़कता है
सेही के नुकीले काँटों के नीचे
धड़कते हृदय की तरह

यह ज़रूर है
सेही
मार डाले जाने और
खा ली जाने से
डरती है

मनुष्य
प्रेम न किए जाने से ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदयन वाजपेयी'''
</poem>
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